कदम कदम रूसवाई
अंग अंग को डसती अब,
साँप साँप तनहाई ।
तपते जलते राहों में,
कदम कदम पर धूल
बूढे बूढे पेड़ों पर
सूखे सूखे फूल ।
टुकड़े टुकड़े आशा की
फड़ फड़ करती हँसी,
ज्यों पिंजरे में कैद कोई
पँख तोड़ता पंछी ।
इसी पिंजरें में बँद है
मैं और मेरी तनहाई,
छटपटाते है हम दोनों
होती नहीं रिहाई ।।"
(c) 2007 Arya Manu