आज फिर रो रही है रात
गम की कश्ती दौड़ रही है मन में
उछल -उछल कर दौड़ रही मन के आँगन में
हो रही फिर आज बरसात
आज फिर रो रही है रात
क्यों ना पहचाना मै उस बदनाम शख्स को
जिसे दुनिया ने ठुकराया
और मेने अपना माना उसको
भूल गई थी वो मेरी हर बात
आज फिर रो रही है रात
इस दर्द को हर बार खुरेदता है वो गुनहगार
उसका हर जख्म था मजेदार
हमेशा अधूरी रहती थी हमारी मुलाकात
आज फिर रो रही
क्यों मुझे सता रही वो
क्यों मेरी आँखें भीगा रही वो
देख ना "रोबो" मेरी हो गई आज काली रात
आज फिर रो रही रात
By - Chandan Rathore